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सीद॒ त्वं मा॒तुर॒स्याऽउ॒पस्थे॒ विश्वा॑न्यग्ने व॒युना॑नि वि॒द्वान्। मैनां॒ तप॑सा॒ मार्चिषा॒ऽभिशो॑चीर॒न्तर॑स्या शु॒क्रज्यो॑ति॒र्विभा॑हि ॥१५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सीद॑। त्वम्। मा॒तुः। अ॒स्याः। उ॒पस्थे॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। विश्वा॑नि। अ॒ग्ने॒। व॒युना॑नि। वि॒द्वान्। मा। ए॒ना॒म्। तप॑सा। मा। अ॒र्चिषा॑। अ॒भि। शो॒चीः॒। अ॒न्तः। अ॒स्या॒म्। शु॒क्रज्यो॑ति॒रिति॑ शु॒क्रऽज्यो॑तिः। वि। भा॒हि॒ ॥१५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

माता का कर्म्म अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्या को चाहनेवाले पुरुष ! (त्वम्) आप (अस्याम्) इस माता के विद्यमान होने पर (विभाहि) प्रकाशित हो (शुक्रज्योतिः) शुद्ध आचरणों के प्रकाश से युक्त (विद्वान्) विद्यावान् आप (अस्याः) इस प्रत्यक्ष पृथिवी के समान आधाररूप (मातुः) इस माता की (उपस्थे) गोद में (सीद) स्थित हूजिये। इस माता से (विश्वानि) सब प्रकार की (वयुनानि) बुद्धियों को प्राप्त हूजिये। (एनाम्) इस माता को (अन्तः) अन्तःकरण में (मा) मत (तपसा) सन्ताप से तथा (अर्चिषा) तेज से (मा) मत (अभिशोचीः) शोकयुक्त कीजिये, किन्तु इस माता से शिक्षा को प्राप्त होके प्रकाशित हूजिये ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् माता के द्वारा विद्या और अच्छी शिक्षा से युक्त किया हुआ, माता का सेवक, जैसे माता पुत्रों को पालती है, वैसे प्रजाओं का पालन करे, वह पुरुष राज्य के ऐश्वर्य्य से प्रकाशित होवे ॥१५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मातृकृत्यमाह ॥

अन्वय:

(सीद) तिष्ठ (त्वम्) (मातुः) जनन्याः (अस्याः) प्रत्यक्षाया भूमेरिव (उपस्थे) समीपे (विश्वानि) सर्वाणि (अग्ने) विद्यामभीप्सो (वयुनानि) प्रज्ञानानि (विद्वान्) यो वेत्ति सः (मा) (एनाम्) (तपसा) सन्तापेन (मा) (अर्चिषा) तेजसा (अभि) (शोचीः) शोकयुक्तां कुर्याः (अन्तः) आभ्यन्तरे (अस्याम्) मातरि (शुक्रज्योतिः) शुक्रं शुद्धाचरणं ज्योतिः प्रकाशो यस्य सः (वि) (भाहि) प्रकाशय। [अयं मन्त्रः शत०६.७.३.१५ व्याख्यातः] ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वमस्यां मातरि सत्यां विभाहि प्रकाशितो भवास्या भूमेरिव शुक्रज्योतिर्विद्वान् मातुरुपस्थे सीद। अस्याः सकाशाद् विश्वानि वयुनानि प्राप्नुहि। एनामन्तर्मा तपसार्चिषा माभिशोचीः किन्त्वेतच्छिक्षां प्राप्य विभाहि ॥१५ ॥
भावार्थभाषाः - यो विदुष्या मात्रा विद्यासुशिक्षां प्रापितो मातृसेवको जननीवत् प्रजाः पालयेत्, स राज्यैश्वर्येण प्रकाशेत ॥१५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याला विदुषी मातेने विद्या व चांगले शिक्षण यांनी युक्त केलेले असेल व जो मातेची सेवा करीत असेल किंवा माता जसे पुत्राचे पालन करते तसे प्रजेचे पालन करणारा असेल अशा पुरुषाने राजा व्हावे व ऐश्वर्य भोगावे.